अध्याय 8 श्लोक 8

निम्न 8, 9, 10 श्लोकों में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य पूर्ण परमात्मा के विषय में कहा है।

अभ्यासयोगयुक्तेन, चेतसा, नान्यगामिना।
परमम्, पुरुषम्, दिव्यम्, याति, पार्थ, अनुचिन्तयन्।।8।।

अनुवाद: (पार्थ) हे पार्थ! (अभ्यासयोगयुक्तेन) परमेश्वरके नाम जाप के अभ्यासरूप योगसे युक्त अर्थात् उस पूर्ण परमात्मा की पूजा में लीन (नान्यगामिना) दूसरी ओर न जानेवाले (चेतसा) चित्तसे (अनुचिन्तयन्) निरन्तर चिन्तन करता हुआ भक्त (परमम्) परम (दिव्यम्) दिव्य (पुरुषम्) परमात्माको अर्थात् परमेश्वरको ही (याति) प्राप्त होता है। (8)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे पार्थ! परमेश्वरके नाम जाप के अभ्यासरूप योगसे युक्त अर्थात् उस पूर्ण परमात्मा की पूजा में लीन दूसरी ओर न जानेवाले चित्तसे निरन्तर चिन्तन करता हुआ भक्त परम दिव्य परमात्माको अर्थात् परमेश्वरको ही प्राप्त होता है। (8)