अध्याय 8 श्लोक 11
यत्, अक्षरम्, वेदविदः, वदन्ति, विशन्ति, यत्, यतयः, वीतरागाः,
यत्, इच्छन्तः, ब्रह्मचर्यम्, चरन्ति, तत्, ते, पदम्, सङ्ग्रहेण, प्रवक्ष्ये।।11।।
अनुवाद: उपरोक्त श्लोक 8 से 10 में वर्णित (यत्) जिस सच्चिदानन्द घन परमेश्वर को (वेदविदः) वेद के जानने वाले अर्थात् तत्वदर्शी सन्त (अक्षरम्) वास्तव में अविनाशी (वदन्ति) कहते हैं। (यत्) जिसमें (यतयः) यत्नशील (वितरागाः) रागरहित साधक जन (विशन्ति) प्रवेश करते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं (यत्) जिसे (इच्छन्तः) चाहने वाले (ब्रह्मचर्यम्) ब्रह्मचर्य का (चरन्ति) आचरण करते हैं अर्थात् ब्रह्मचारी रह कर भी उस परमात्मा को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। (तत्) उस (पदम्) पद अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने वाले भक्ति पद्धती को उस पूजा विधि को (ते) तेरे लिए (सङ्ग्रेहण) संक्षेप से अर्थात् सांकेतिक रूप से (प्रवक्ष्ये) कहूँगा। (11)
केवल हिन्दी अनुवादः उपरोक्त श्लोक 8 से 10 में वर्णित जिस सच्चिदानन्द घन परमेश्वर को वेद के जानने वाले अर्थात् तत्वदर्शी सन्त वास्तव में अविनाशी कहते हैं। जिसमें यत्नशील रागरहित साधक जन प्रवेश करते हैं अर्थात् प्राप्त करते हैं जिसे चाहने वाले ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं अर्थात् ब्रह्मचारी रह कर भी उस परमात्मा को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। उस पद अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने वाले भक्ति पद्धती को उस पूजा विधि को तेरे लिए संक्षेप में अर्थात् सांकेतिक रूप से कहूँगा।
भावार्थ: इस अध्याय में गीता ज्ञान दाता भिन्न.2 साधना का ज्ञान करते हुए कह रहा है कि जो तत्वदर्शी संत नाम (मन्त्र) जाप के लिए बताता है जिससे मोक्ष प्राप्त करते हैं। वह मार्ग बताऊँगा जिसका वर्णन गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में किया है कि पूर्ण परमात्मा की साधना का तो केवल ओम्-तत्-सत् यह तीन अक्षर का मन्त्र है, अन्य नहीं।