अध्याय 15 श्लोक 9

श्रोत्रम्, चक्षुः, स्पर्शनम्, च, रसनम्, घ्राणम्, एव, च,
अधिष्ठाय, मनः, च, अयम्, विषयान्, उपसेवते ।।9।।

अनुवाद: (अयम्) यह परमात्मा - अंश जीव आत्मा (श्रोत्रम्) कान (चक्षुः) आँख (च) और (स्पर्शनम्) त्वचा (च) और (रसनम्) रसना (घ्राणम्) नाक (च) और (मनः) मनके (अधिष्ठाय) माध्यम से (एव) ही (विषयान्) विषयों अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि का (उपसेवते) सेवन करता है। फिर उस का कर्म भोग जीवात्मा को ही भोगना पड़ता है। (9)

हिन्दी: यह परमात्मा - अंश जीव आत्मा कान आँख और त्वचा और रसना नाक और मनके माध्यम से ही विषयों अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि का सेवन करता है। फिर उस का कर्म भोग जीवात्मा को ही भोगना पड़ता है।