अध्याय 4 का श्लोक 2
एवम्, परम्पराप्राप्तम्, इमम्, राजर्षयः, विदुः,
सः, कालेन, इह, महता, योगः, नष्टः, परन्तप।।2।।
अनुवाद: (परन्तप) हे परन्तप अर्जुन! (एवम्) इस प्रकार (परम्पराप्राप्तम्) परम्परासे प्राप्त (इमम्) इस भक्ति मार्ग को (राजर्षयः) राजर्षियोंने (विदुः) जाना किंतु उसके बाद (सः) वह (योगः) योग अर्थात् भक्ति मार्ग (महता) बहुत (कालेन) समय से (इह) इस पृथ्वीलोकमें (नष्टः) समाप्त हो गया (2)
हिन्दी: हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परासे प्राप्त इस भक्ति मार्ग को राजर्षियोंने जाना किंतु उसके बाद वह योग अर्थात् भक्ति मार्ग बहुत समय से इस पृथ्वीलोकमें समाप्त हो गया।