अध्याय 7 श्लोक 13

त्रिभिः, गुणमयैः, भावैः, एभिः, सर्वम्, इदम्, जगत्,
मोहितम्, न अभिजानाति, माम्, एभ्यः, परम्, अव्ययम् ।।13।।

अनुवाद: (एभिः) इन (गुणमयैः) गुणोंके कार्यरूप सात्विक श्री विष्णु जी के प्रभाव से, राजस श्री ब्रह्मा जी के प्रभाव से और तामस श्री शिवजी के प्रभाव से (त्रिभिः) तीनों प्रकारके (भावैः) भावोंसे (इदम्) यह (सर्वम्) सारा (जगत्) संसार - प्राणिसमुदाय (माम्) मुझ काल के ही जाल में (मोहितम्) मोहित हो रहा है अर्थात् फंसा है (एभ्यः) इसलिए (परम् अव्ययम्) पूर्ण अविनाशीको (न) नहीं (अभिजानाति) जानता। (13)

केवल हिन्दी अनुवाद: इन गुणोंके कार्यरूप सात्विक श्री विष्णु जी के प्रभाव से, राजस श्री ब्रह्मा जी के प्रभाव से और तामस श्री शिवजी के प्रभाव से तीनों प्रकारके भावोंसे यह सारा संसार - प्राणिसमुदाय मुझ काल के ही जाल में मोहित हो रहा है अर्थात् फंसा है इसलिए पूर्ण अविनाशीको नहीं जानता। (13)

{परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी की महिमा सन्त गरीबदास जी ने कही है तथा काल का जाल समझाया है:- गरीब, ब्रह्मा विष्णु महेश, माया और धर्मराया (काल) कहिए। इन पाँचों मिल प्रपंच बनाया वाणी हमरी लहिए।।}