अध्याय 7 श्लोक 4-5
भूमिः, आपः, अनलः, वायुः, खम्, मनः, बुद्धिः, एव, च,
अहंकारः, इति, इयम्, मे, भिन्ना, प्रकृतिः, अष्टधा ।।4।।
अपरा, इयम्, इतः, तु, अन्याम्, प्रकृतिम्, विद्धि, मे, पराम्,
जीवभूताम्, महाबाहो, यया, इदम्, धार्यते, जगत् ।।5।।
अनुवाद: (भूमिः) पृथ्वी (आपः) जल (अनलः) अग्नि (वायुः) वायु (खम्) आकाश आदि से स्थूल शरीर बनता है (एव) इसी प्रकार (मनः) मन (बुद्धिः) बुद्धि (च) और (अहंकारः) अहंकार आदि से सूक्ष्म शरीर बनता है (इति) इस प्रकार (इयम्) यह (अष्टधा) आठ प्रकारसे अर्थात् अष्टंगी ही (भिन्ना) विभाजित (मे) मेरी (प्रकृतिः) प्रकृति अर्थात् दुर्गा है (इयम्) ये (तु) तो (अपरा) अपरा अर्थात् इसके तुल्य दूसरी देवी नहीं है तथा उपरोक्त दोनों शरीरों में इसी का परम योगदान है और (महाबाहो) हे महाबाहो! (इतः) इससे (अन्याम्) दूसरीको (यया) जिससे (इदम्) यह सम्पूर्ण (जगत्) जगत् (धार्यते) संभाला जाता है। (मे) मेरी (जीवभूताम्) जीवरूपा चेतन (पराम्) दूसरी अर्थात् साकार चेतन (प्रकृतिम्) प्रकृति अर्थात् दुर्गा (विद्धि) जान। क्योंकि दुर्गा ही अन्य रूप बनाकर सागर में छूपी तथा लक्ष्मी-सावित्री व उमा रूप बनाकर तीनों देवों से शादी करके जीव उत्पत्ति की। (4-5)
केवल हिन्दी अनुवाद: पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश आदि से स्थूल शरीर बनता है इसी प्रकार मन बुद्धि और अहंकार आदि से सूक्ष्म शरीर बनता है इस प्रकार यह आठ प्रकारसे अर्थात् अष्टंगी ही विभाजित मेरी प्रकृति अर्थात् दुर्गा है ये तो अपरा अर्थात् इसके तुल्य दूसरी देवी नहीं है तथा उपरोक्त दोनों शरीरों में इसी का परम योगदान है और हे महाबाहो! इससे दूसरीको जिससे यह सम्पूर्ण जगत् संभाला जाता है। मेरी जीवरूपा चेतन दूसरी साकार चेतन प्रकृति अर्थात् दुर्गा जान। क्योंकि दुर्गा ही अन्य रूप बनाकर सागर में छूपी तथा लक्ष्मी-सावित्री व उमा रूप बनाकर तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) से विवाह करके जीवों की उत्पत्ति की। (4-5)