अध्याय 8 श्लोक 25

धूमः, रात्रिः, तथा, कृष्णः, षण्मासाः, दक्षिणायनम्,
तत्र, चान्द्रमसम्, ज्योतिः, योगी, प्राप्य, निवर्तते ।।25।।

अनुवाद: (धूमः) अन्धकार (रात्रिः) रात्रि-का कर्ता है (तथा) तथा (कृष्णः) कृष्णपक्ष (दक्षिणायनम्) दक्षिणायनके (षण्मासाः) छः महीनोंका है (तत्र) उस मार्गमें मरकर गया हुआ (योगी) योगी (चान्द्रमसम्) चन्द्रमाकी (ज्योतिः) ज्योतिको (प्राप्य) प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मोंका फल भोगकर (निवर्तते) वापस आता है। (25)

केवल हिन्दी अनुवाद: अन्धकार रात्रि-का कर्ता है तथा कृष्णपक्ष है और दक्षिणायनके छः महीनोंका है उस मार्गमें मरकर गया हुआ योगी चन्द्रमाकी ज्योतिको प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मोंका फल भोगकर वापस आता है। (25)

विशेषः- उपरोक्त दोनों श्लोकों का भावार्थ परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने अपनी अमृतवाणी स्वसम वेद में कहा है कि

तारा मण्डल बैठ कर चाँद बड़ाई खाय। उदय हुआ जब सूरज का स्यों तारों छिप जाय

वाणी का अर्थः- जैसे रात्री के समय चन्द्रमा तारों की रोशनी से अधिक चमकदार होता है। परन्तु सूर्य के प्रकाश के समक्ष उस का प्रकाश समाप्त हो जाता है। यहाँ चांद तो ब्रह्म तथा परब्रह्म तथा तारे ब्रह्मा-विष्णु व शिव जाने तथा सूर्य पूर्ण परमात्मा का लाभ जाने।