अध्याय 8 श्लोक 22
पुरुषः, सः, परः, पार्थ, भक्त्या, लभ्यः, तु, अनन्यया।
यस्य, अन्तःस्थानि, भूतानि, येन, सर्वम्, इदम्, ततम्।।22।।
अनुवाद: (पार्थ) हे पार्थ! (यस्य) जिस परमात्माके (अन्तःस्थानि) अन्तर्गत (भूतानि) सर्वप्राणी हैं और (येन) जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मासे (इदम्) यह (सर्वम्) समस्त जगत् (ततम्) परिपूर्ण है जिस के विषय में उपरोक्त श्लोक 20, 21 में तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 तथा 17 में व अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, तथा 65, 66 में कहा है। (सः) वह (परः) परम (पुरुषः) परमात्मा (तु) तो (अनन्यया) अनन्य (भक्त्या) भक्तिसे ही (लभ्यः) प्राप्त होने योग्य है। (22)
केवल हिन्दी अनुवाद: हे पार्थ! जिस परमात्माके अन्तर्गत सर्वप्राणी हैं और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मासे यह समस्त जगत् परिपूर्ण है जिस के विषय में उपरोक्त श्लोक 20-21 में तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 तथा 17 में व अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62, तथा 65, 66 में कहा है। वह श्रेष्ठ परमात्मा तो अनन्य भक्तिसे ही प्राप्त होने योग्य है। (22)